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धारयेत्पाठयेद्धपि संपठेद्वापि नित्यशः।।

कृपां कुरु जगन्नाथ वद वेदविदां वर ॥ २॥

बटुकायेति विज्ञेयं महापातकनाशनम् ॥ ७॥

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा

न देयं परिशिष्येभ्यो कृपणेभ्यश्च शङ्कर ।

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा

पातु मां बटुको देवो website भैरवः सर्वकर्मसु ।

साम्राज्यत्वं प्रियं दत्वा पुत्रवत् परिपालयेत् ॥ ६॥

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा ।

मम श्रीबटुकभैरवप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥



 

बटुक भैरव कवच का व्याख्यान स्वयं महादेव ने किया है। जो इस बटुक भैरव कवच का अभ्यास करता है, वह सभी भौतिक सुखों को प्राप्त करता है।

कुरुद्वयं महेशानि मोहने परिकीर्तितम् ॥ ८॥

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